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विशेषण (Adjective )
विशेषण (Adjective) : संज्ञा और सर्वनाम के गुण, दोष, संख्या, परिणाम आदि बताने वाले शब्दों को विशेषण कहते है ।
जैसे :- 1. रमन ने काली कुर्ती पहनी हुई है ।
2. सुमन बहुत सुंदर है ।
3. निर्मल अच्छा लड़का है ।
4. नीले आकाश मे पक्षी उड़ रहे है।
5. गिलास मे ठंडा पानी है।
इन वाक्यों मे काली, बहुत सुंदर, अच्छा, नीले, ठंडा ये शब्द रमन, सुमन, निर्मल, आकाश, पानी आदि की विशेषता बता रहे है ।
जिन संज्ञा या सर्वनाम शब्दों की विशेषता बताई जाति है उन्हे विशेष्य कहते है ।
विशेषण के चार भेद होते है :-
1. गुणवाचक विशेषण :- जिन शब्दों से संज्ञा सर्वनाम के गुण, दोष, रूप, रंग, दशा, आकार, का बोध हो उसे गुणवाचक विशेषण कहते है । जैसे :-
(क) मुझे सफेद साड़ी दो ।
(ख) मीठा आम खाओ ।
2. परिमाणवाचक विशेषण :- जिन शब्दों से वस्तुओ की माप- तोल संबंधी विशेषता का बोध होता हो उन्हे परिमाणवाचक विशेषण कहते है ।जैसे :-
(क) मैं आधाकिलो दूध पीता हूँ।
(ख) यह पर्दा 4 मीटर का है।
परिमाणवाचक विशेषण के दो प्रकार होते है
(क) निश्चित परिमाणवाचक :- जो विशेषण माप तोल का निश्चित परिमाण बताते है उन्हे निश्चित परिमाणवाचक विशेषण कहते है।
जैसे :- मैंने दस आम दिए ।
(ख) अनिश्चितपरिमाण वाचक :- जिन विशेषण शब्दों से किसी निश्चित परिमाण का बोध नहीं होता है । वे अनिश्चितपरिमाण विशेषण कहलाते हैं ।
जैसे :- विनय ने राधा को कुछ रुपये दिए ।
3. संख्यावाचक विशेषण :- जिस विशेषण मे संज्ञा या सर्वनाम की संख्या का बोध होता है, उसे संख्यावाचक विशेषण कहते है। ये दो प्रकार के होते है :-
(क) निश्चित संख्यावाचक :- इस विशेषण मे संज्ञा या सर्वनाम की निश्चित संज्ञा का ज्ञान होता है
जैसे :- (1) मुझे दो साइकिलें बेचनी है ।
(2) सुमन को कार 4 लाख मे बेची।
(ख) अनिश्चित संख्यावाचक :- इस विशेषण मे संज्ञा या सर्वनाम क किसी निश्चित संख्या का ज्ञान नहीं हो पाता है। जैसे :-
(1) उसे पैसों की जरूरत है।
(2) कुछ दिनों की छुट्टी चाहिए।
4. सार्वनामिक या संकेतवाचक विशेषण :- जो सर्वनाम संकेत के द्वारा संज्ञा या सेवणं की विशेषता बताते है उन्हे संकेतवाचक विशेषण कहते है। जैसे:-
(1) यह मेरा विद्यालय है।
(2) बच्चे टीवी देख रहे है।
विशेषण की अवस्थाएँ :- विशेषण की तीन अवस्थाएँ होती है :
(क) मूलावस्था (ख) उत्तरावस्था (ग) उत्तमावस्था।
संज्ञा सर्वनाम के गुण -दोष, रंगरूप, आकार-अवस्था दश आदि की तुलना करने को विशेषण अवस्था कहते है।
(क) मूलावस्था :- जब किसी विशेषण का प्रयोग एक व्यक्ति, वस्तु या प्राणी के लिए होता है, तो इसे विशेषण की मूलवस्था कहा जाता है।
जैसे :- विनय सुंदर है।
(ख) उत्तरावस्था :- जब किसी विशेषण का प्रयोग दो व्यक्तियों, वस्तुओ,पदार्थों या प्राणियों आदि के गुण-दोष, रंग-रूप, आकार-अवस्था, दशा के लिए किया जाता है, और उसमे दोनों की तुलना की जाती है, या किसी एक को अधिक या कम बताया जाता है, तो इसे उत्तरावस्था कहते है।
जैसे :- निरज मुकेश से लंबा है।
(ग) उत्तमावस्था :- जब किसी विशेषण का प्रयोग एक से अधिक व्यक्तियों, वस्तुओ, पदार्थों आदि की तुलना करने के लिए किया जाता है तथा उसमे से एक को सबसे कम या अधिक बताया जाता है, तो यह विशेषण की उत्तमावस्था कहलाती है।
जैसे :- रीना सब लड़कियों से सुंदर है।
विशेषणों की रचना :- विशेषणों की रचना चार प्रकार से की जाती है:
(1) संज्ञा द्वारा
(2) सर्वनाम द्वारा
(3) क्रिया द्वारा
(4) अव्यय द्वारा
विशेषण की रचना करते समय प्रत्यय का प्रयोग किया जाता है ।
के स्थान पर जिन शब्दों का प्रयोग होता है उसे सर्वनाम कहते है । इसके शाब्दिक अर्थ को समझे तो 'सबका नाम' यह शब्द किसी व्यक्ति विशेष के द्वारा प्रयुक्त न होकर सबके द्वारा प्रयुक्त होते है, मैं का प्रयोग सभी व्यक्ति अपने लिए करते है अतः 'मैं' कोई नाम न होके सबका नाम होता है इसलिए सर्वनाम है
जैसे - मैं, मेरा, मेरी, मेरे, मुझे, मैंने, तुम, वह, हम, हमें, हमारा, हमारे
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